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जन्म और शिक्षा

22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गाँव में जन्मे राजा राममोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उनके पिता रामकांत राय वैष्णव थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें पटना भेजा गया। कुशाग्र बुद्धि के धनी राममोहन राय ने 15 वर्ष की उम्र तक बांग्ला, पारसी, अरबी और संस्कृत सीख ली थी।

उनका उद्देश्य शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक स्वभाव के महत्व पर जोर देकर परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटना था। उनके प्रगतिशील विचारों ने प्रचलित रूढ़ियों को चुनौती दी और सामाजिक परिवर्तन की लहर पैदा की।

राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का निर्माता और भारतीय पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है। वह एक महान भारतीय समाज सुधारक थे। उन्होंने भारत में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक सुधार भी किये।

उनके जीवन और विरासत तथा देश पर उनके गहरे प्रभाव पर विचार करना अनिवार्य है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: राम मोहन रॉय का जन्म राधानगर गाँव, बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान हुगली जिला, पश्चिम बंगाल) में हुआ था। एक रूढ़िवादी हिंदू परिवार में पैदा होने के बावजूद, उन्होंने प्रगतिशील शिक्षा प्राप्त की।

बचपन से ही उनके मन में सामाजिक कुरीतियों के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया था। उनका निधन 27 सितंबर 1833 को हो गया था। 

“सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ो”

1. सती प्रथा का उन्मूलन:- 

राजा राममोहन राय की भाभी को बचपन में ही बड़े भाई की अनुपस्थिति में चिता पर बाँधकर जिंदा जला दिया गया था। यही वह घटना थी जिसने उन्हें नास्तिक बना दिया। उन्होंने सती प्रथा, बहुविवाह, बाल विवाह, मूर्ति पूजा, जाति व्यवस्था का विरोध करना शुरू कर दिया। 

उनके प्रयासों की परिणति 1829 में बंगाल सती विनियमन अधिनियम के पारित होने के रूप में हुई, जिसने इस अमानवीय प्रथा को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।

रॉय ने लड़कियों के लिए स्कूलों की स्थापना की और ज्ञान तक उनकी पहुंच का समर्थन किया, उन्हें सशक्त बनाने और प्रचलित लैंगिक असमानताओं को खत्म करने का प्रयास किया। उनके प्रयासों से वर्ष 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने भारत में सती प्रथा को ख़त्म करने की घोषणा की।

2. शिक्षा को बढ़ावा देना:

राजा राममोहन राय ने समाज में मौजूद कुरीतियों और अशिक्षा के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। उन्होंने 1817 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में हिंदू कॉलेज की स्थापना की, जो बाद में प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में विकसित हुआ। रॉय के प्रयासों से भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखने में मदद मिली और प्रबुद्ध दिमागों की एक पीढ़ी का विकास हुआ।

राजा राम मोहन राय सदैव सामाजिक सुधारों में रुचि रखते थे। उन्होंने भारत के लोगों की स्थिति को सुधारने के लिए बहुत मेहनत की और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में महान कार्य किया।

राजा राममोहन राय ने हर धर्म में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने हिंदू धर्म के साथ-साथ इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया। उन्होंने सभी धर्मों में व्याप्त बुराइयों को त्यागने और मानवतावादी सोच अपनाने पर जोर दिया।

“वह मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे” उन्होंने मानव मात्र की एकता पर बल दिया। वह धर्म, जाति और संप्रदाय की सीमाओं से बहुत ऊपर थे।  उन्होंने इसकी अंतर्निहित क्रूरता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया।

 
 

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