जानिए क्या है आज खास, बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व शुभ मुहूर्त और व्रत की विधि
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु अपनी चार माह की निद्रा से जागे। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाएगी। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु बेलपत्र को निर्भय पाते हैं। इसके अलावा भगवान शिव को कमल के फूल भी चढ़ाए जाते हैं। ऐसे में बैकुंठ चतुर्दशी का शास्त्र बहुत महत्वपूर्ण है। भक्त भी इस चतुर्दशी का इंतजार करते हैं, ताकि एक दिन वे भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा कर सकें।
बैकुंठ चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 14, 2024 को 09:43 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – नवम्बर 15, 2024 को 06:19 बजे
वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिता काल – 23:39 से 00:32, नवम्बर 15
अवधि – 00 घण्टे 53 मिनट
बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
इस त्यौहार को हर (भगवान शिव) और हरि (भगवान विष्णु) के मिलन का दिन भी माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी केवल लोक आराधना का पर्व नहीं है। बल्कि यह हर और हरे के मिलन का भी प्रतीक है, जो सभी धर्मों और मान्यताओं को एक सूत्र में बांधने का संदेश देता है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा करने का महत्व यह है कि सभी देवता एक ही हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत की विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु और शिव जी के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
- भगवान के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
- भगवान विष्णु को बेलपत्र और भगवान शिव को कमल के फूल अर्पित करें।
- पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें।
- फिर मंत्र जाप और व्रत कथा का पाठ करें।
- अंत में आरती करने के बाद पूजा में हुई भूल चूक के लिए भगवान से क्षमा मांगे।
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