जानिए कब है बाबा खाटू श्याम जी का जन्मदिन ?
श्याम बाबा का जन्मदिन हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, तिथि लगभग हर साल बदलती है। इस साल 2024 में बाबा श्याम का जन्मदिन 12 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा । बाबा खाटू श्याम जी को कलयुग का देव माना जाता है। इनको हारे का सहारा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति हार कर इनके दर पर जाता है बाबा उसको जीत दिलाते हैं।
खाटू श्याम जी का जन्मदिन हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की ग्यारस यानि एकादशी तिथि के दिन मनाया जाता है। हालांकि कुछ लोग बाबा का जन्मदिन फाल्गुन मास की ग्यारस तिथि को मनाते हैं। खाटू वाले बाबा का जन्मदिन पूरे देश में बहुत ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बाबा के भक्तों को बाबा के जन्मदिन का पूरे साल इंतजार रहता है।
खाटू श्याम जी के मंत्र
ॐ श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय सुह्र्दयाय नमो नमः।।
ॐ मोर्वी नंदनाय विद् महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्।।
ॐ श्याम शरणम ममः
ॐ खातुनाथाय नमः
बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम
खाटू श्याम बाबा का असली नाम बर्बरीक था। बाबा श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे और पांडवों के पौत्र थे। बर्बरीक अपनी साधना से महान धनु धर बने थे। उनकी मां मौरवी के आशीर्वाद के कारण उनमें बचपन से ही बहुत तेज था। जब महाभारत युद्ध की शुरुआत हुई। तब बर्बरीक की भी इच्छा इस युद्ध को देखने और भाग लेने की हुई, लेकिन उनकी मां ने उनको वचन दिया था कि वो युद्ध में उनका ही साथ देंगे जो पक्ष हार रहा होगा। वो अपनी मां की आज्ञा का पालन करने के लिए युद्ध स्थल की ओर बढ़ गए। भगवान कृष्ण को ये सारी बाते पता थी। वो जानते थे कि यदि बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो पांडवों की हार निश्चित है, इसलिए कृष्ण ने साधु रूप धारण कर बर्बरीक से उनके शीश दान में मांग लिए। बर्बरीक ने आसानी से अपना शीश दान दे दिया। बर्बरीक के त्याग को देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें अपना नाम श्याम दे दिया। तब से ही बर्बरीक को खाटू श्याम नाम से जाना जानें लगा।
देवउठनी को ही क्यों मनाया जाता है जन्मदिन ?
बर्बरीक (खाटू श्याम) के महान बलिदान से काफी प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे। वरदान देने के बाद उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिये उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक गाय उस स्थान पर आकर प्रतिदिन अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में जब उस स्थान की खुदाई हुई तो वहां पर शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया है। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तो उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया। इसीलिये हमेशा देवउठनी एकादशी को ही श्री खाटूश्याम जी का जन्मदिन मनाया जाता है।
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